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Wednesday, March 2, 2011

देशी गौ वंश के फायदे

भारतीय - गौवंश के बारे में कछ खास बातें जानने योग्य हैं, एक चिकित्सक के रूप में पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि संसार के लगभग सभी रोगों का इलाज भारतीय गौवंश के पन्चगव्य, स्पर्श तथा उनकी (गौवंश) की सेवा से संभव है, ऐलोपैथिक दवाइयां बनाना-बेचना संसार का सबसे बड़ा व्यापार (हथियारों के बाद) बनचुका है या यूँ कहें की बनादिया गया है, ऐसे में अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए हर प्रकार के अनैतिक अमानवीय हथकंडे अपनाने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां गौवंश के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकती हें, इस सच को समझना जरूरी है, भारतीय गौधन को समाप्त करने के हर प्रयास के पीछे इन पश्चिमी कम्पनियों का हाथ होना सुनिश्चित होता है, हमारी सरकार तो केवल उनकी कठपुतली है इन विदेशी ताकतों की हर विनाश योजना की एक खासियत होती है कि वह योजना हमारे विकास के मुखैटे में हम पर थोंपी जाती है गोवंश विनाश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, वह कैसे ? --------

1.    दूध बढ़ाने के नाम पर विदेशी गौवंश को बढ़ावा दिया गया और इसके लिए अरबों रूपये के अनुदान दिए गए, भारतीय गौवंश की समाप्ति चुपके से होती चली गयी। जबकि अमेरिकी और यूरोपीय वैज्ञानिक सन 1986-88 में ही जान चुके थे कि हालिसटन फ्रीजियन, जर्सी तथा रेड डेनिश नामक अमेरिकन-यूरोपियन गौओं के दूध में बीटाकेसिन ए-1 नामक प्रोटीन पाया गया है जिससे मधुमेह, मानसिक रोग, ऑटिज्म तथा कई प्रकार के कैंसर यथा स्तन , प्रोस्टेट , अमाशय, ऑतो, फेफड़ों तक का कैंसर होने क प्रमाण मिले हैं यह महत्वपूर्ण खोज ऑकलैंड ए-2 कारपोरेशन के साहित्य में उपलब्ध है, तभी तो ब्राजील ने 40 लाख से अधिक भारती गौए तैयार की हैं और आज वह संसार का सबसे बड़ा भारती गौ वंश का निर्यातक देश हे, यह अकारण तो नहीं हो सकता उसने अमेरिकी गोवंश क्यों तैयार नहीं कर लिया ? वह अच्छा होता तो करता न और हम क्या कर रहे हैं ? अपने गौ-धन का यानी अपना विनाश अपने हाथों कर रहे है न ?

2.     दूध बढ़ाने का झांसा देकर देकर हमारी गौओं को समाप्त करने का दूसरा प्रयास तथा कथित दुग्ध-वर्धक हारमोनो के द्वारा किया जा रहा है बोविन -ग्रोथ (ऑक्सीटोसिन आदि) हारमोनों से 2-3 बार दूध बढ़ कर फिर गौ सदा के लिए बॉझ हो जाती है ऐसी गौओं के कारण सड़को पर लाखों सुखी गौएं भटकती नजर आती हैं इस सच को हम सामने होने पर भी नहीं देख पा रहे तो यह बिके हुए सशक्त प्रचार तंत्र के कारण ।

3.    गोवंश के बॉझ होने या बनाये जाने का तीसरा तरीका कृत्रिम गर्भाधान है, आजमाकर देख लें कि स्वदेशी बैल के संसर्ग में गौएं अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और सरलता से नए दूध होने वाली बनती है। है ना कमाल कि दूध बढ़ाने के नाम पर हमारे ही हाथों हमारे गौ-धन कि समाप्ति करवाई जा रही है और हमें आभास तक नहीं ।

आधुनिक भारतीय नारी

                           भारतीय नारी के अनेक स्वरूप है। उसके बारे में जब-जब सोचती हू तो लगता है कि किस नारी की बात करूँ कहॉ से बात शुरू की जाए ? विश्व गुरू के पद परआसीन भारत की उन ऋषि पत्नीयों की, जो ज्ञान व विद्वत्ता में इतनी आगे कि शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों को भी टक्कर देती गार्गी, अपाला, मैत्रेयी ? अष्टवक्र जैसे विद्वान को जन्म देने की लालसा में पति द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए ज्ञान को आत्मसात करती, परन्तु इसी कारण अपने पति द्वारा श्रापित कुरूप संतान को जन्म देने को विवश अपने पति के साथ युद्ध में उसक साथ जा उसकी शक्ति बन अर्द्धांगिनी का धर्म निभाने वाली वीरांगनाओं की बात करूँ या फिर आज की अत्याधुनिक कहलाने वाली उस नारी की जो अपने भौतिक सुखों के लिए अपने परिवार, पति यहॉ तक अपने बच्चों का भी त्याग कर केवल धन को ही सर्वोपरि मान बैठी है। आधुनिक समाज की अत्याधिक पिछड़े वर्ग की अनपढ़ समाज से उपेक्षित महिलाओं पर होते हर अत्याचार को सहती नारी ? या फिर पढे लिखे समाज में रहने वाली आधुनिकता की होढ़ में भाग लेती, मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग की नारी जो बराबरी की होढ़ में अपना सब कुछ भूलती जा रही हैं अपने संस्कार, अपनी परिपाटी परिवार यहॉ तक कि अपना स्वभी।
       प्राचीन समय से ही भारत जगदगुरू के स्थान पर आसीन रहा है। विश्व का स्वर्ग भारत को कहा गया है। भारत का भाल-कशमीर जिसके लिए ये शब्द कहे गये कि वि में यदि कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। अखंड भारत का चित्र जब सामने रखा हो तो ऐसा लगता है कि मानो पूर्ण श्रृंगार किए, हरी-लाल साड़ी में लिपटी भारतीय नारी ही तो है जिसे हमने मॉ का रूप दिया। यहां बहने वाली हवाओं में, यहॉ के वातावरण में ही गार्गी,अपाल, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं का निर्माण हुआ। दुर्गा, लक्ष्मी जैसी शक्तियॉ यहीं अवतरति हुईं। धन्य है यह धरती, जहॉ राम-कृष्ण जैसे आलोकिक, दिव्य आत्मा को जन्म देने वाली माताओं का आर्शीवाद प्राप्त हुआ। इस देश की मिट्टी ने मॉ सीता का निर्माण किया है। मॉ सीता! घर-घर में राम-सीता की पूजा की जाती है। मंदिर में कितना सुंदर राम दरबार लगा है। लेकिन कभी उनके गुणों को भी आत्मसात करने का विचार किया ? माता सीता, जिसने कदम कदम पर अपने पति श्रीराम का साथ दिया। बनवास तो मात्र राम के लिए था, परन्तु सीता ने पति धर्म का निर्वाह करते हुए उनके साथ 14 वर्ष तक सभी कठिनाइयों का समना किया। त्यक्त होने के बावजूद भी अपने शिशुओं में सभी सर्वोचित संस्कार तो विकसित किए ही, रघुवंश की परंपराओं के प्रति भी उन में पूरी आस्था निर्माण की। वह आस्था , वह प्रेम, विश्वास जिसे चौदह वर्षो का वनवासी जीवन, उसकी कठिनाइयॉं और बाद में त्यक्त जीवन भी जिसकी जड़े ना हिला सका, वे सभी तो हम भूल रहें है। तनिक सुख के लिए परिवार से विमुखता ? बच्चों के कर्तव्य से विमुखता ? उसी का परिणाम है समाज में उन्मुक्त, उच्छृंखल युवा पीढ़ी। तरूण मन भावी जीवन के सपने संजोने की बजाए किसी उन्मादी माहौल में पल रहा है। जड़ो में पैठता जाता आतंकवाद, अपने तनिक सुख की पिपासा, थोड़ा शारीरिक सुख, झूठी मानसिक खुशी के लिए आवश्यक्ता से भी अधिक साधन जुटाए हैं हमने अपने लिए। उसी का परिणाम है कि बच्चे रिश्तो की मर्यादा तक भुला बैठे हैं और अपनी जनमदात्री मॉ पर ही पलट वार करते हैं।
     
                       पर आज हम कुछ ऐसी आधुनिक महिलाओं का का स्मरण करना चाहते है जिनकी उपलब्धियॉ हमें प्रेरणा देती हैं। चेन्म्मा, रानी दुर्गावती, रजिया सुल्तान, महारानी लक्ष्मीबाई ,मॉ जिजाबाई या दवी अहिल्याबाई तो अब हमारे लिए इतिहास बन गईं हैं स्वामी विवेकानेद के साथ आई मार्गरेट जिसने पूरे समर्पण भाव से इस देश के लिए कार्य किया और भगिनी निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। या फिर महर्षि अरविंद के साथ कार्य करने के आई मार्गरेट जो श्रीमॉ के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मी बाई केलकर जैसी अनेक महिलाएं आज भी इतिहास लिख रही हैं। इस कड़ी में कल्पना चावला को नाम तो एक ऐसा नाम है जो अविस्मरणीय है। राजनीति में मैडम कामा, इंदिरा गॉधी, समाज सेवा के क्षेत्र में मेधा पाटेकर खेलों में सानिया मिर्जा या फिर सुनीता विलियम जैसे अनेक नाम हैं। हर क्षेत्र में आज महिलाएं कुछ बेहतर कर रही हैं। बल्कि वे हर क्षेत्र में ये चमत्कार कर रही है कि वे पुरूषों से बेहतर हैं। परंतु गुलाम मानसिकता से जकड़े समाज में वह इतना प्रताड़ित की गई कि आज वह यही सब करने में जुटी हुई है, और जहॉ वह कमजोर पड़ती है कि पुरूष प्रधान समाज उसे प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता       
  
                                      परिणति ? वह भूल रही है कि ईश्वर ने उसे एक आलौकिक शक्ति दी है। वह है सृजन करने की। इसी शक्ति के कारण हम उसे किसी से भी अलग नहीं कर सकते, बल्कि वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। बस आवश्यक्ता है उसे पहचानने कि। हममें वो शक्ति है कि हम इस समाज को जैसा चाहें वैसा ही ढाल सकते है। बच्चों को जो शिक्षा देना चाहें दे सकते हैं। यानि कि इस देश, समाज को जैसा बनाना चाहें बना सकते है। आज पुनः इस देश के। उसे अपने परिवार, अपने समाज व अपने देश के लिए पुनः इस देश को आवष्यकता है मॉ जिजा की। मॉ सीता की या फिर पुत्री का धर्म निभाने वाली सुकन्या की। उसे अपने परिवार, अपने समाज व अपने देश के लिए पुनः उस वैदिक स्त्री के रूप में आना होगा। लेकिन इसकी जिम्मेवारी अकेले उसकी नहीं, हम सभी की होगी। तो फिर कोई ताकत हमें रोक नहीं पाएगी और हम पुनः विश्व गुरू के चरण को छूने को तैयार होंगे।                  

गुंजन  लेखिका समाज सेवी है।

Monday, December 20, 2010

sampadkiye

 माननीय,
     जय मॉ भारती जय स्वदेशी 
स्वदेशी मीमांसा का प्रमुख उद्देश्य विकास की अंधी दौड़ का दिशा  परिवर्तन कर एक प्राकृतिक वैज्ञानिक सोच एवं स्वदेशी मैनेजमेंट (स्थानीय स्वदेशी स्वावलंबन व्यवस्था) के साथ देशी  को अपनी परस्पर पोषण आधारित समृद्ध संस्कृति की ओर मोड़ना है। 
अनेक आजादी के वीर सपूतों तथा ऋषि-मुनियों के अनुभवी सिद्ध विचारों एवं सपनों को मूर्त रूप देने के लिये अखिल भारतीय स्वदेशी संघ ने सर्वप्रथम मध्यप्रदेश स्वदेशी आदर्श  प्रदेश बनाने की घोषणा विगत विश्व अहिंसा दिवस गॉधी-शस्त्री जयंती के अवसर पर 3 व 4 अक्टूबर 2009 को भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय स्वदेशी कार्यशाला ”आ लौट चले स्वदेशी की ओर“ के अवसर पर की है। इसी तर्ज पर अन्य प्रदेशों को भी स्वदेशी आदर्श प्रदेश बनाने की योजना है। शनेः शनैः सम्पूर्ण भारत देश को स्वदेशीमय करना है क्योंकि यह सर्वविदित है कि स्वदेशी की स्थापना के बिना एक मजबूत भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस घोषणा को मूर्तरूप देने के लिये देश एवं प्रदेश के आध्यात्मिक एवं स्वयं सेवी संगठनों/संस्थाओं,  राजनीतिक दलों, सरकारों, शसन-प्रशासन, पत्रकार, एवं जनता जनार्दन को एक जुट कर सामूहिक रूप से ददत्रेश में माहौल बनाने एवं ठोस कार्ययोजना बनाने के लिये यह अभियान प्रेरणा स्त्रोत स्वदेशी संत श्री राजेश पोरवाल जी के सफल नेतृत्व में योजनाबद्ध एवं समयबद्धता के साथ तेजी से चलाया जा रहा है। जिसकी चाहूँ ओर प्रशंसा एवं सहयोग मिल रहा है।
तब से अब तक स्वदेशी एवं स्वावलंबन पर आधारित कईं संगठनात्मक गतिविधियॉ, कार्यशालाएं, रैलियॉ एवं सत्याग्रहों का आयोजन किया गया है तथा सरकारी स्तर पर भी कईं विभागों में स्वदेशी एवं स्वावलंब पर आधारित  नीतियॉ बनवाने में सहयोग, वातावरण निर्माण, सलाह एवं मार्गदर्शन संबंधित विभागों के मंत्रियों एवं अधिकारियों का किया गया। परिणामस्वरूप कईं विभागों में स्वदेशी स्वावलंबन पर आधारित नीतियॉ बनाना एवं क्रियान्वयन की प्रक्रिया व्यापक पैमाने पर प्रारंभ भी हो चुकी है। लेकिन देश के कर्णधार कईं मंत्रियों एवं अधिकारियों में अभी भी स्वदेशी स्वावलंबन के प्रति समझ कम होने से गंभीरता एवं संवेदनशीलता की बेहद कमी है। इन परिस्थितियों को देखते हुवे राष्ट्रीय मासिक पत्रिका स्वदेशी मीमांसा का प्रकाषन अखिल भारतीय स्वदेशी संघ का मुख्यालय एवं देश का दिल मध्यप्रदेश की खुबसूरत राजधानी भोपाल से किया जा रहा हैं। स्वदेशी मीमांसा का उद्देश्य राष्ट्रीय चरित्र निर्माण करते हुवे संगठनात्मक     गतिविधियों को एकरूपता में बांधने तथा देश एवं विदेश में सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों द्वारा उक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिये चल रही स्वदेशी एवं स्वावलंबन योजनाओं एवं रचनात्मक सृजनात्मक दैनिक गतिविधियों को शनैः-शनैः देश एवं संपूर्ण विश्व के लाखों राजनेताओं, अधिकारियों, पत्रकारों एवं स्वयं सेवी संगठनों तथा जन जन में नियमित रूप से पहुंचाकर उनका जो जहां है वहीं सतत् शिक्षण, प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शन करना है।
पश्चिम के कथित विकास की नकल के चक्कर में भारत एवं संपूर्ण विश्व कर्ज, भ्रष्टाचार, प्रकृति, मानव एवं प्राणी मात्र की तबाही के भयावह जंजाल में फंस गया है। अब तो आधुनिक विकास एवं उदारीकरण का आदर्श बने अमेरिका एवं तमाम विकसित अमीर देशों की अर्थव्यवस्थाएं अप्रत्याशित से लड़खड़ा रही है, उनके द्वारा गढ़ा गया अप्राकृतिक विश्व्यापी दारीकरण का मॉडल के  दुष्परिणाम तेजी से निकल रहे हैं । उदारीकरण अधोगति से पूर्णरूपेण फैल हो रहा है, यह सर्वविदित है। विश्व के कथित अर्थशस्त्री हतप्रभ होकर मात्र दर्शनार्थी बन गये हैं, उनके तमाम अनुमान एवं गणित पूरी तरह ताष के महल साबित हुए है। तो हम उस विनाशकारी विदे षी मॉडल को क्यों अपनाएं ? महात्मा गांधी ने कहा है कि ‘‘मेरे घर के खिड़की दरवाजे हमेशा खुले रहें, लेकिन मैं यह कदापि पसंद नहीं करूंगा कि कोई आंधी मेरा घर ही उड़ा ले जाये।’’            
 इस पत्रिका का उद्देश्य निम्न संदर्भों में किसानों, युवाओं, महिलाओं एवं बच्चों, व्यापारियों एवं उद्योगपतियों सहित जन- जन को को स्वावलंबी बनाकर स्वदेषी स्वावलंबन पर आधारित जैविक कृषि, गोसंवर्द्धन, पशुधन, जलसंरक्षण, जैव प्रौद्योगिकी एवं जैव विविधता, पर्यावरण, स्वावलंबी उर्जा, भारतीय उद्योग, एवं लघुकुटीर उद्योग, लघुवनोउपज, स्वास्थ्य एवं शिक्षा, महिला एवं बालकल्याण, पर्यटन, रोजगार, युवा एवं खेल, संस्कृति, इत्यादि अन्य से संबंधित षासन की नीतियों का मार्गदर्शन कर योजनाओं की जानकारियॉ एक आदर्श एवं टिकाऊ स्थायी मॉडल के रूप में उपलब्ध करवा कर प्रतियोगिता उत्पन्न करना है। जिससे हमारा लोकतंत्र सतत् और अधिक सफल, सजग एवं जागरूक बनकर  भ्रष्टाचार मुक्त कर मजबूत बन सकें तभी स्वतंत्रता का सही अर्थ जन सामान्य में व्याप्त हो सकेगा।    
                              राजेश शर्मा
                            प्रधान संपादक