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Wednesday, March 2, 2011

आधुनिक भारतीय नारी

                           भारतीय नारी के अनेक स्वरूप है। उसके बारे में जब-जब सोचती हू तो लगता है कि किस नारी की बात करूँ कहॉ से बात शुरू की जाए ? विश्व गुरू के पद परआसीन भारत की उन ऋषि पत्नीयों की, जो ज्ञान व विद्वत्ता में इतनी आगे कि शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों को भी टक्कर देती गार्गी, अपाला, मैत्रेयी ? अष्टवक्र जैसे विद्वान को जन्म देने की लालसा में पति द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए ज्ञान को आत्मसात करती, परन्तु इसी कारण अपने पति द्वारा श्रापित कुरूप संतान को जन्म देने को विवश अपने पति के साथ युद्ध में उसक साथ जा उसकी शक्ति बन अर्द्धांगिनी का धर्म निभाने वाली वीरांगनाओं की बात करूँ या फिर आज की अत्याधुनिक कहलाने वाली उस नारी की जो अपने भौतिक सुखों के लिए अपने परिवार, पति यहॉ तक अपने बच्चों का भी त्याग कर केवल धन को ही सर्वोपरि मान बैठी है। आधुनिक समाज की अत्याधिक पिछड़े वर्ग की अनपढ़ समाज से उपेक्षित महिलाओं पर होते हर अत्याचार को सहती नारी ? या फिर पढे लिखे समाज में रहने वाली आधुनिकता की होढ़ में भाग लेती, मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग की नारी जो बराबरी की होढ़ में अपना सब कुछ भूलती जा रही हैं अपने संस्कार, अपनी परिपाटी परिवार यहॉ तक कि अपना स्वभी।
       प्राचीन समय से ही भारत जगदगुरू के स्थान पर आसीन रहा है। विश्व का स्वर्ग भारत को कहा गया है। भारत का भाल-कशमीर जिसके लिए ये शब्द कहे गये कि वि में यदि कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। अखंड भारत का चित्र जब सामने रखा हो तो ऐसा लगता है कि मानो पूर्ण श्रृंगार किए, हरी-लाल साड़ी में लिपटी भारतीय नारी ही तो है जिसे हमने मॉ का रूप दिया। यहां बहने वाली हवाओं में, यहॉ के वातावरण में ही गार्गी,अपाल, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं का निर्माण हुआ। दुर्गा, लक्ष्मी जैसी शक्तियॉ यहीं अवतरति हुईं। धन्य है यह धरती, जहॉ राम-कृष्ण जैसे आलोकिक, दिव्य आत्मा को जन्म देने वाली माताओं का आर्शीवाद प्राप्त हुआ। इस देश की मिट्टी ने मॉ सीता का निर्माण किया है। मॉ सीता! घर-घर में राम-सीता की पूजा की जाती है। मंदिर में कितना सुंदर राम दरबार लगा है। लेकिन कभी उनके गुणों को भी आत्मसात करने का विचार किया ? माता सीता, जिसने कदम कदम पर अपने पति श्रीराम का साथ दिया। बनवास तो मात्र राम के लिए था, परन्तु सीता ने पति धर्म का निर्वाह करते हुए उनके साथ 14 वर्ष तक सभी कठिनाइयों का समना किया। त्यक्त होने के बावजूद भी अपने शिशुओं में सभी सर्वोचित संस्कार तो विकसित किए ही, रघुवंश की परंपराओं के प्रति भी उन में पूरी आस्था निर्माण की। वह आस्था , वह प्रेम, विश्वास जिसे चौदह वर्षो का वनवासी जीवन, उसकी कठिनाइयॉं और बाद में त्यक्त जीवन भी जिसकी जड़े ना हिला सका, वे सभी तो हम भूल रहें है। तनिक सुख के लिए परिवार से विमुखता ? बच्चों के कर्तव्य से विमुखता ? उसी का परिणाम है समाज में उन्मुक्त, उच्छृंखल युवा पीढ़ी। तरूण मन भावी जीवन के सपने संजोने की बजाए किसी उन्मादी माहौल में पल रहा है। जड़ो में पैठता जाता आतंकवाद, अपने तनिक सुख की पिपासा, थोड़ा शारीरिक सुख, झूठी मानसिक खुशी के लिए आवश्यक्ता से भी अधिक साधन जुटाए हैं हमने अपने लिए। उसी का परिणाम है कि बच्चे रिश्तो की मर्यादा तक भुला बैठे हैं और अपनी जनमदात्री मॉ पर ही पलट वार करते हैं।
     
                       पर आज हम कुछ ऐसी आधुनिक महिलाओं का का स्मरण करना चाहते है जिनकी उपलब्धियॉ हमें प्रेरणा देती हैं। चेन्म्मा, रानी दुर्गावती, रजिया सुल्तान, महारानी लक्ष्मीबाई ,मॉ जिजाबाई या दवी अहिल्याबाई तो अब हमारे लिए इतिहास बन गईं हैं स्वामी विवेकानेद के साथ आई मार्गरेट जिसने पूरे समर्पण भाव से इस देश के लिए कार्य किया और भगिनी निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। या फिर महर्षि अरविंद के साथ कार्य करने के आई मार्गरेट जो श्रीमॉ के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मी बाई केलकर जैसी अनेक महिलाएं आज भी इतिहास लिख रही हैं। इस कड़ी में कल्पना चावला को नाम तो एक ऐसा नाम है जो अविस्मरणीय है। राजनीति में मैडम कामा, इंदिरा गॉधी, समाज सेवा के क्षेत्र में मेधा पाटेकर खेलों में सानिया मिर्जा या फिर सुनीता विलियम जैसे अनेक नाम हैं। हर क्षेत्र में आज महिलाएं कुछ बेहतर कर रही हैं। बल्कि वे हर क्षेत्र में ये चमत्कार कर रही है कि वे पुरूषों से बेहतर हैं। परंतु गुलाम मानसिकता से जकड़े समाज में वह इतना प्रताड़ित की गई कि आज वह यही सब करने में जुटी हुई है, और जहॉ वह कमजोर पड़ती है कि पुरूष प्रधान समाज उसे प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता       
  
                                      परिणति ? वह भूल रही है कि ईश्वर ने उसे एक आलौकिक शक्ति दी है। वह है सृजन करने की। इसी शक्ति के कारण हम उसे किसी से भी अलग नहीं कर सकते, बल्कि वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। बस आवश्यक्ता है उसे पहचानने कि। हममें वो शक्ति है कि हम इस समाज को जैसा चाहें वैसा ही ढाल सकते है। बच्चों को जो शिक्षा देना चाहें दे सकते हैं। यानि कि इस देश, समाज को जैसा बनाना चाहें बना सकते है। आज पुनः इस देश के। उसे अपने परिवार, अपने समाज व अपने देश के लिए पुनः इस देश को आवष्यकता है मॉ जिजा की। मॉ सीता की या फिर पुत्री का धर्म निभाने वाली सुकन्या की। उसे अपने परिवार, अपने समाज व अपने देश के लिए पुनः उस वैदिक स्त्री के रूप में आना होगा। लेकिन इसकी जिम्मेवारी अकेले उसकी नहीं, हम सभी की होगी। तो फिर कोई ताकत हमें रोक नहीं पाएगी और हम पुनः विश्व गुरू के चरण को छूने को तैयार होंगे।                  

गुंजन  लेखिका समाज सेवी है।

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